कृषक की व्यथा

कृषक की व्यथा

कहलाता वो अन्नदाता  है,
मिट्टी से सोना उगाता है।
मेहनत से वो ना डरे कभी,
वसुंधरा ही उसकी माता है॥

वो तृप्त करे  दूसरों को,
पर खुद भूखा सो जाता है।
मेहनत से वो ना डरे कभी,
वसुंधरा ही उसकी माता है॥

हाड़ कपाऊँ ठंड हो या हो प्रचंड गर्मी
प्रतिकूल मौसम भी उसे डरा ना पाता है॥
मेहनत से वो ना डरे कभी,
वसुंधरा ही उसकी माता है॥

श्रम से हरगिज हार ना माने,
पर अभावों से क्यूँ टूट जाता है?
मेहनत से वो ना डरे कभी,
वसुंधरा ही उसकी माता है॥

कृषि प्रधान कहाता अपना देश,
फिर क्यूँ कृषक फांसी चढ़ जाता है॥
मेहनत से वो ना डरे कभी,
वसुंधरा ही उसकी माता है॥

वो ना हो तो सोचो क्या होगा? ?
जो खुद की बलि दे हमें खिलाता है॥
मेहनत से वो ना डरे कभी,
वसुंधरा ही उसकी माता है॥

रचयिता 
गीता यादव,
प्रधानाध्यपिका,
प्राथमिक विद्यालय मुरारपुर,
विकास खण्ड-देवमई,
जनपद-फ़तेहपुर।

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