आत्ममंथन : टीचर में कुछ अवगुण~आओ मिल कर दूर करें


1). प्रातःकालीन सभा के लिए,लंच ऑफ करने के लिए घण्टी समय पर लगवानी है,इसका ध्यान कुछ अध्यापक बिलकुल नहीं रखते । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि घण्टी समय पर लगी या नहीं । उन्हें ये लगता है कि ये सिर्फ हेड को ध्यान रखना है या उन 1-2 अध्यापक का काम है जो लगभग स्कूल की सभी व्यवस्थाओं को हर समय दुरुस्त करने का काम करते हैं ।

2). कुछ अध्यापक ऐसे होते हैं,जिन्हें ये तो पता है कि मुझे 2:30 बजे से पहले हाजिरी रजिस्टर/बायोमेट्रिक के पास आकर बैठ जाना है । 1 मिनट भी फ़ालतू समय स्कूल को नहीं देना । लेकिन दूसरी तरफ यही अध्यापक तब भी बड़े आराम से बैठे गप्पे मार रहे होते हैं जबकि लंच ब्रेक ऑफ होने की घण्टी बज चुकी होती है । वो इतना जहमत नहीं उठाते कि अब सभी बच्चों को कक्षा में बैठा दें । ये काम भी 1-2 अध्यापकों या स्कूल मुखिया को ही करना पड़ता है ।

3). कुछ अध्यापक प्रातःकालीन सभा में झुण्ड में एक तरफ अपने हाथ बांधे इस तरह खड़े हो जाएंगे जैसे कि वो प्रातःकालीन सभा में मेहमान हैं । अपनी कक्षा के बच्चों की लाइन लगवाना,प्रातःकालीन सभा में कुछ ज्ञानवर्धक बोलना या बच्चों को कुछ आदतें सिखाना,ऐसा ख्याल इनके मन में आना न के बराबर है।

4). कुछ अध्यापक नहीं चाहते कि प्रातःकालीन सभा में सभी गतिविधियाँ हों । वे चाहते हैं कि बस प्रार्थना और राष्ट्रगान कराके बच्चों को कक्षाओं में भेज दो । कोई अध्यापक प्रातःकालीन सभा को बढ़िया तरीके से संचालित करता है तो ये रुचि न दिखाने वाले अध्यापक उससे बड़े परेशान रहते हैं । ये मन ही मन में यही सोचते हैं कि कब ये यंहा से जाएगा ! अगर कभी प्रातःकालीन सभा लम्बी हो भी गयी तो ये छाया और कुर्सी ढूंढते फिरते हैं । इतनी भी हिम्मत नहीं होती कि ये कुछ देर खड़े हो सकें ।

5). कुछ अध्यापक ऐसे मतलबी हैं जब इनको खुद का काम निकलवाना होता है तो बहुत मीठे बन जाते हैं और स्कूल मुखिया का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं लेकिन जब स्कूल मुखिया उनसे ये अपेक्षा रखता है कि वो स्कूल में अपने कार्य के प्रति पूरी निष्ठा से काम करें तब इनका सहयोग न के बराबर होता है । तब न तो वो स्कूल मुखिया को कुछ समझते हैं और न ही कोई कार्य ढंग से करते हैं । मुखिया को सम्मान देना तो दूर की बात कभी कभी दुर्व्यवहार करने से भी पीछे नहीं रहते ।


6). कुछ अध्यापक होते तो हैं किसी कक्षा के इंचार्ज,लेकिन उनका हाजिरी रजिस्टर बड़ा अस्त-व्यस्त होता है । कितने बच्चे हैं,किसका नाम कटा है,कौन आता है आदि-आदि कुछ नहीं पता होता । उससे ज्यादा ज्ञान उनकी कक्षा के बच्चों को होता है ।


7). कुछ अध्यापक किसी कक्षा के इंचार्ज,दाखिला रजिस्टर के इंचार्ज या रिजल्ट रजिस्टर के इंचार्ज होते हैं लेकिन उसमें भी लापरवाही बरतते हैं । खुद उनको दुरुस्त रखते नहीं,बल्कि उनको पूरा करने के लिए भी वो विद्यार्थियों की या अन्य साथी अध्यापक की मदद लेते हैं । उनकी इस तरह की लापरवाही से बाद में स्कूल को बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है ।



8). कुछ अध्यापक अपने आपको तो बहुत सलीके से रखेंगे,अच्छे कपड़े पहनेंगे,खुद को थोड़ी सी मिटटी भी नहीं लगने देंगे,चाक को तो जैसे छूने से उनको एलर्जी ही हो जायेगी । लेकिन विद्यार्थियों की,कक्षा-कक्ष की या स्कूल की साफ़ सफाई से उन्हें कोई लेना देना नहीं । खुद के लिए कुर्सी और मेज जरूर चाहिए लेकिन बच्चों को जब चाहा वंही बैठा दिया चाहे धुल-मिटटी हो या आसपास गन्दगी । विद्यार्थियों से भी दूरी बनाकर रखेंगे जाने क्यों उनको वहम है कि सरकारी स्कूल के बच्चों में,उनके कपड़ों में बांस मारती है ।



9). कुछ अध्यापक सारा सारा दिन निकाल देते हैं लेकिन बच्चों को एक अक्षर तक नहीं सिखाते । या तो वो कक्षा में ही नहीं जाते और चले गए तो भी सिवाए बैठे बैठे कुर्सी तोड़ने के कुछ नहीं करते ।



10). कुछ पढ़ाने के नाम पर भी औपचारिकता करते हैं । बच्चों को कभी भी कुछ सिखाएंगे नहीं और न ही पढ़ाएंगे । सीधे कह देंगे कि प्रश्न-उत्तर याद कर लो ।



उपरोक्त कमियां सिर्फ एक ही स्कूल के अध्यापकों में नहीं है,बल्कि कई स्कूलों में ऐसा बुरा हाल है । स्कूलों की ऐसी दुर्गति करने में किसी एक का नहीं बल्कि कई अध्यापकों का हाथ है चाहे वो गेस्ट हो या रेगुलर,चाहे महिला हो या पुरुष ।




ऐसा नहीं है कि इस तरह की कमियों वाले अध्यापकों की हरकतों को हर कोई स्कूल मुखिया नजरअंदाज कर देता है । कई स्कूल मुखिया ऐसे हैं जिन्होंने बहुत सुधार की कोशिश की लेकिन बदले में उन्होंने बहुत सहना पड़ा । आखिर में जब इस तरह के अध्यापक मानवीयता के बिलकुल निम्न स्तर पर आ जाते हैं तब स्कूल मुखिया भी ये सोचता है कि कब मुझे इस स्कूल से मुक्ति मिले और कोई अच्छी सी जगह ट्रान्सफर हो।


Comments

  1. Ekdam sahi, mere sath bhi aisa hua

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  2. Kuch jagah pr to mukhiya hi galat hai dinbhar baith k baat hi krte rehte hain or kaam ek v nhi

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  3. बिल्कुल सही बातें आपने दृष्टिगोचर की है ,यदि प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने वाले समर्थ अध्यापक अपनी कमियों को सुधार कर अच्छी शिक्षा दे तो प्राइमरी के नाम से घृणा करने वाले लोग एक दिन प्राइमरी में ही अपने बच्चों को लेकर लाइन लगाए हुए होंगे ।

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